विरह की ये दूरी ग़र मैं
सह न पाऊँगी
साथ न छोडूंगी मैं
साँस छोड़ जाऊंगी
मुहब्बत के मसले
यूँ सुलझाउंगी
देख तुझको
इक नज़र मैं
इश्क़ इश्क़ हो
जाऊंगी
जो किया है वादा
तुम संग
जन्म जन्म निभाऊंगी
इक पुकार पे तेरी मैं
दौड़ी चली आऊँगी
ग़म न करना ज़ाना
मेरे इन हालात का,
सम्भाल दिल में तुझे मैं
बसयूँही मुस्कुराउंगी
सदा से मैं हूँ तेरी
तेरी ही रहूंगी
सुनेगा इक दिन मुझे तू
मैं कुछ न कहूँगी~!!!
💕
सह न पाऊँगी
साथ न छोडूंगी मैं
साँस छोड़ जाऊंगी
मुहब्बत के मसले
यूँ सुलझाउंगी
देख तुझको
इक नज़र मैं
इश्क़ इश्क़ हो
जाऊंगी
जो किया है वादा
तुम संग
जन्म जन्म निभाऊंगी
इक पुकार पे तेरी मैं
दौड़ी चली आऊँगी
ग़म न करना ज़ाना
मेरे इन हालात का,
सम्भाल दिल में तुझे मैं
बसयूँही मुस्कुराउंगी
सदा से मैं हूँ तेरी
तेरी ही रहूंगी
सुनेगा इक दिन मुझे तू
मैं कुछ न कहूँगी~!!!
💕
4 comments:
कितना सुन्दर प्रेम सिक्त दिलासा है .........बेहद प्यारा !!
लिखते रहो मित्र !!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-12-2016) को "जीने का नजरिया" (चर्चा अंक-2559) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया मुकेश जी
बहुत बहुत शुक्रिया आभार आदरणीय शास्त्री जी
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