सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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एक सिक्का___|||

विदा लेते वर्ष ने
एक सिक्का रखा है
मेरी हथेली पे
उम्मीदों का
मैं बहुत खुश हूँ
पर डर ने मुझे
अपने घेरे में
कैद रक्खा है
ख़ौफ़ की जंजीरों से
बांध रखा है
मैं चाहती हूँ हँसना
अपनी खुशी
सबके संग बाँटना
पर बीते वक़्त के
निष्ठुर हवा के
थपेड़ों ने मुझे
तोड़ रक्खा है
अंदेशा के घने
बादलों ने मुझे
घेर रक्खा है
चुपचाप ख़ामोश
मैं भींच हथेली
ये सिक्के वाली
सीने से लगा
सबकी नज़रों से
बचा...नववर्ष में
प्रवेश करना चाहती हूँ
ताकि दे सकूँ फिर इक
प्रलोभन नया
आने वाले समय में
अपने दिल को
तुम्हारे साथ का
अपने विस्वास का
हमारे प्रेम के
इस मधुर अहसास का___|||#बसयूँही

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