सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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कविता

मेरी हर इक
सांस एक नई
कविता गढ़ेगी,
वह कविता
जिसमें ईश्वर
मुझे देख सिटी
मारेगा
बुद्ध मेरी रसोई में
चपाती बेलेगा
जहाँ मैं रावण के साथ
पुष्पक विमान में
डेट पर जाऊंगी
जहाँ भूत मेरे जुड़े में
सितारों को टाँकेगा
जहाँ चिता की अग्नि पर
प्रेत मुझे
चाय बना
पिलायेगा___

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11 comments:

Onkar said...

बहुत खूब

निभा said...

धन्यवाद ओंकार जी 🙏

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक रचना।

अनीता सैनी said...

वाह !

पल्लवी गोयल said...

वाह!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-06-2020) को  "वक़्त बदलेगा"  (चर्चा अंक-3728)    पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

निभा said...

आप सभी आदरणीय गुणीजनों का हृदय तल से आभार🙏

प्रतिभा सक्सेना said...

निराला सोच!

Rakesh said...

कविता और व्यंग एक साथ

निभा said...

आप सभी आदरणीयों का अत्यंत आभार 🙏🤗

मन की वीणा said...

बापरे

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