सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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दूर बहुत दूर

आज बहुत थका देने वाला दिन था, सुबह से हस्पताल पे मुरदे की पड़ी रहने के बाद फिरसे घर आ गई, फिर वही घर के काम और फेसबुक.... एक उम्मीद जो फिर से टुट गई, इस संसार से मन बहुत उचट गया है मेरा, ना जाने कब मुक्ति मिलेगी, खुद को मजबूत दिखाते दिखाते कई बार काफी टुट जाती हूँ, जिस से मेरे अपनो को ही परेशानी होती है, मगर क्या करू हूँ तो मै भी एक इंसान, ये बात और है कि कोई इस बात को मानता नहीं या शायद समझता नहीं, सब कुछ होते हुए भी जिंदगी कभी कभी बहुत विरानी महसूस होती है, शायद इसलिए क्योकि मैने कभी अपनी जिंदगी जी ही नहीं, मुझे ये दुनिया बिलकुल भी नहीं पसन्द, जिसको देखो वही नाटक करता हुआ दिखता है, होता कुछ और है दिखावा कुछ और करता है, मुझे इन सब का हिस्सा नहीं बनना कभी नहीं, मै जो हूँ वो हूँ, चाहे कोई मुझे पसन्द करे या ना करे, मजे की बात तो ये है के मुझे खुद अब ये लगने लगा है के मै गलती से इस दुनिया मै आ गई हूँ.  :) इसलिए अब जाना चाहती हूँ, बहुत दूर सबसे दूर....

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