सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बस यूंही



मुझे रात बहुत पसन्द है

दिन भर अलग अलग किरदार निभाने के बाद

थक हार के कुछ पल मिलता है मुझे मेरा साथ

वो पल जो मेरा है सिर्फ मेरा वो हैं रात

आज इस पल की बड़ी तलब थी मुझे

जाने कब से रोक रक्खी थी मै, आने को कबसे थी बेताब

इन आखों की  बरसात, मै दिन के उजाले मे रोने से डरती हूँ

कोई पूछ ना ले सवाल, इस बात से घबराती हूँ

कैसे कहुं मै रोना चाहती हूँ

बीना किसी डर बीना किसी पुछताछ के खुल के आँसूओ को बहाना चाहती हूँ, मुझे हक दो के मै भी जिना चाहती हूँ,



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