सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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कहर

हर तरफ कहर है बरपा, कहीं कुदरत का क्रोध
कहीं घिनौनी राजनीतिको के साज़िशों का तड़का
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अभी उतराखंढ के कहर को भूले भी नहीं के उन मासूम बच्चों की मौत ने दहला दिया, क्या कसूर था उनका सिर्फ यही के वो इस देश मे पैदा हुए जहाँ राजनीति लाशों से होके गुजरती है, क्यों हमेशा शिकार आम आदमी ही बनता है? कितनी अजीब विडंबना है एक कुरसी को संभालने के लिए अनगिनत कब्रें खरी करने मे जरा भी संकोच नही करते.. कभी खुदको उन बच्चों के माँ बाप के जगह पर रख के देखों जिन्होंने अपने मासूम सपनो को खोया है, जिनको अपने कांधों पे खिलाया उन्हें कांधा देते  वक्त कैसा महसूस हो रहा होगा, जरा सोचों, अफ़सोस, नहीं सोच पाओगे, सोचने के लायक होते तो शायद आज भी  देश को हमपे और हमे देश पे गर्व होता
आज नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की वो लाइन तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूँगा.... याद आ गई..... आज की दौड़ मे फर्क सिर्फ इतना है के खून बन गया वोट आज़ादी मौत   ... आज की राजनीति कहती है... तुम मुझे वोट दो मै तुम्हें मौत दूँगा......

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