सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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इंसानीयत

खो गया है जो हमसे, उसे ढुंढ के लाना है...
है अगर इंसान तो, इंसानियत भी दिखलाना है....
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थक गई  ढुंढते -ढुंढते, ना जाने कहाँ छुप गया.
ना कोई आहट, ना कोई हलचल, जाने कहाँ है गुम हुआ.
मिला ना उसका कोई ठिकाना, ना ही कोई ठौड़.
जाने कब मिलेगा वो, कब आयेगी वो भोर.
खिल उठेगी धरती सारी, गूँज उठेगा इक नया शोर.
बंधेगी वातावरण मे, उम्मीदों की एक नई डोर.
आओ के मिलके ढुंढे उसे, जो खो गया है हम सबके बीच..
ज्यों कहीं से मिल जाये वो, होगी हम इंसानों की जीत....

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