सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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तन्हाई♥

सारी कोसिसे नाकाम सी हो जाती है .. 
सूरज के साथ साथ मन पे भी 
अंधेरा सा छाने लगता है ...
अपने ही शब्दो के बबंडर में 
फसी सी जा रही हूँ में ..
निकालना चाहती हूँ उन सबको बाहर 
कहना चाहती हूँ किसी से 
लेकिन कह नहीं सकती 
कोई भी तो नहीं है पास मेरे 
इन बेजान दीवारो के सिवा 
जिन्हे सुना सकू 
अपने मन कि तमाम बातो को 
चाहती हुँ थोड़ी सी राहत
अपने लिए ....
कोई नहीं मिलता पास 
देखने लगती हुँ फिर उन्ही 
दीवारो को एक आस 
एक विश्वास के साथ 
के सायद आज उन दीवारो से 
बात करके कर सकूँ में अपने मन को हल्का 
शुरु कर देती हूँ उनसे बाते करना 
बोलती ही जाती हूँ 
बिना रुके बिना सोचे 
मेरी कही हुई हर बात वो सुनता है 

लेकिन कुछ पल में लोट के आ जाती हैं मेरे पास 
मेरी ही कही हर बात ...
कुछ भी अलग नहीं होता 
सिवा दर्द के ....अपनी परिस्थिति का आभास 
पाते ही दर्द पहले से भी बढ़ जाता है ..
जानती हूँ ये सफ़र मेरी 
ज़िंदगी से जुड़ गयी है 
अब युही इसी राह पे चलते जाना है 
फिर भी न जानें क्यों एक सवाल 
बार बार दिल कि गहराइयो से उठता है 
आखिर मैं ही क्यों ...ये मेरे साथ ही क्यों ...

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