सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बस यूंही♥

मुझमे ही समाये हुए हो 
न जाने फिर क्यों 
ये अंखियां तुम्हें बाहर
तलाशतीं हैं 

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