सच तो सच है.... उसे ना किसी खूबसूरती की जरूरत है..... ना ही दिमाग की..... आज की खूबसूरती की गुलाम दुनिया के सामने अकसर वो नज़र अंदाज़ हो जाती है... सच बेहद गरीब है.. और गरीबों को ये चकाचौंध वाली दुनिया भला कब रास आई है... वो तो किसी कोने में दीवार से सटे छत को निहारते हुए इन्तजार करती है..
उस वक्त का जब ये दुनिया होश में आयेगी... जब झुठ की खूबसूरत फिल्म खत्म हो जायेगी.... फिर ढुंढ़ेंगी निगाहें उस सच को.... सच जीवन है... सच ही मरण है.... .तो भला झुठ के हसीन परदे में कोई कब तक छुप सकता है..... आखरी पराव में तो सच का सामना होना ही है... जानते है किसी को सच नही पसन्द.... शायद इसलिये सच का साथ कोई नही देता....
वही झुठ को सहारा देने के लिये हज़ारों हाथ आगे आ जातें हैं...
जहा सच कभी दिमाग की कमी महसूस नही करता.. क्योंकि उसे खूदको याद रखने की कभी जरूरत नही पड़ती.... वही झुठ बिना दिमाग के एक कदम नही चल पाता... उसे हर पल हर घड़ी दिमाग की जरूरत पड़ती है...... झुठ को दिमाग का साथ प्राप्त है शायद इसलिये वो दुनिया पे हावी है....
सच तो सिर्फ सच है.... उसके पास कुछ नही है सच्चाई के अलावा.. ...वो तो बिना दिमाग के ही अपने हाल के बारे में सोचता रहता है... उसकी सोच बढ़ती जाती है.... इस कदर बढ़ती जाती है जहाँ ऊपर वाला भी कुछ नही कर सकता.... तो ये इंसान कहाँ से साथ देंगे...
सच गरीब है परंतु धैर्यवान है....
झुठ हसीन है परंतु मेहमान है.....
सच♥झुठ
09:28 |
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