तारीफ़.... भी शायद कोई नशा होता है... बस लत लगने की देर होती है.....
इस नशे को पाने के लिये कुछ लोग इस हद तक जा पहुँचते है के अपनी अंतरआत्मा तक को मार डालते है.....
कई दिनों से सोच रही थी....
खूबसूरती...... प्रेम..... तारीफ़ के बारे में....... क्या सच में सच्चा प्रेम.... शुद्ध प्रेम खूबसूरत चेहरों और तारीफ़ों से ही होती है..... क्या तारीफ़ों से ही प्रेम को बाँध रखा जा सकता है.....
नही ऐसा नही है......
प्रेम तो हवा है.... जो दिखता नही सिर्फ महसूस होता है... पास से गुज़र जायें तो शरीर में प्राण वायु का संचारण हो चलता है....
प्रेम सत्य है..... इसे सत्य सिद्ध करने के लिये दिमाग से उपजे किसी भारी भरकम शब्द की जरूरत नही... नाहीं तारीफ़ों के मायाजाल की...... तारीफ़ सुनने की असली खुशी तो तब है जब आप
स्वयं अपनी तारीफ़ अपनी आँखों में आँख मिला कर सको....
प्रेम कोई सिढ़ी नही जो मंज़िल तक पहुँचायें.....
प्रेम तो एक दरिया है जो अपने साथ डूबोता जाये...
प्रेम को तो बस प्रेम ही रहने दो.... प्रेम में कुछ ढुंढ़ा नही जाता
प्रेम में तो गुम हो जाना होता है..... ♥
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