ह्रदय के पास ना आँखें हैं ना ही दिमाग...
ना तो ह्रदय बोल सकता है.. ना ही सून सकता है...
ह्रदय तो बस महसूस करता है... उन अहसासों को...
जो कभी प्रेम की बारिश में भीगें हुए उस तक आन पहुँचते हैं...
तो कभी कोई अहसास नफ़रतों से सरोवर हो आपको छू जातें हैं..
ह्रदय तो फूल समान है.... जहाँ प्रेम भरे अहसास का स्पर्श पाता है खिल उठता है.... बिना आँखों के वो देख ही नही पाता के ये प्रेम भरी अहसासों की छुअन है किसकी.... दिमाग नही है उस ह्रदय में के वो अपने पराये का भेद कर पाये..... वो तो बस प्रेम में खिलना जानता है...... वो खिलता जाता है.......
जहाँ शरीर अपनी जिंदगी दूसरों के नाम पूरी निष्ठा के साथ समर्पित हो जाता है.... वही ह्रदय कुछ पल अपने लिये चाहे तो क्या बुराई है..... ह्रदय कोई रीती रिवाज नही जानता ना ही वो मानता.... वो तो उस नवजात शिशु के तरह है जिसे ना अपने मजहब का पता है ना किसी रिश्तों का...... जो प्रेम से गोद लें.. उन्हीं को अपना सर्वच समझ बैठता है..... वो अनभिज्ञ होता है किसी भी हक से...... वो खुश होता है तब तक जब तक किसी प्रिय के बाहों में होता है..... लेकिन प्रिय के द्वारा गोद से उतारे जाने पर दुखी होता है... रोता है..... लेकिन कुछ कह नही पाता... उसके पास बोल
जो नही होते.... ये ह्रदय सच में नवजात शिशु ही तो है... दोनों ही सिर्फ महसूस करना जानते हैं और दोनों ही मुक हैं.....
ह्रदय से जिने वाले हमेशा कष्ट पाते हैं.... लेकिन जो कुछ पल खुशियों के मिल जाये तो उस में जिंदगी भी गुज़ार सकते हैं....
अकसर देखा गया इस दुनिया में ह्रदय की बातें सब करते हैं मगर कोई इसकी कद्र नही करता.....
अकसर नये नये इल्जामों के घेरे में खूद को पाता है ये ह्रदय...
फिर भी वो संतुष्ट है......
किसी के द्वारा ना समझे जाने की तकलीफ़ होती है....
लेकिन संतुष्ट है ह्रदय......
ह्रदय सच है
ह्रदय संतुष्ट है. ♥
ं
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