सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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दिल जाने क्यूँ......

कितना भी समझा लो इस दिल को समझता ही नही।।। जाने क्यूँ ये दर्द थमता ही नही।।।खुश हूँ मैं पर ये दिल मानता ही नही।।। जाने क्या चाहता है बार बार इन आँखों में आंसुओं का सैलाब ले आता है।।। क्या हुआ जो मैं नज़र में रही नही मेरी नज़रों को जो भाता है।।
जो पुकारे किसी और को जाने क्यूँ ये दिल दुखता है।।। मैं खुश हूँ बहोत ये दिल क्यूँ नही मानता है।।। कैसे आये उसपे गुस्सा जिससे जन्मों का नाता है।।। नही मालूम उसे तो क्या जिससे रूह का रिश्ता है ।।।।उसकी खुशियाँ ही है जिंदगी मेरी जो मुझमे समाया है।।। मैं खुश हूँ ये दिल जाने क्यूँ पराया है।।।।।।

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