सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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तेरे नाम की अर्ज़ी

लिख़ रही हूँ जाना तेरे नाम की अर्ज़ी
जाने हो क्या आगे रब की मर्ज़ी
तू है निर्मोही सनम बड़ा बेदर्दी
जानु मैं जान प्यार तेरा फर्ज़ी
देख मेरे दिल की खुदगर्ज़ी
चाहे तुझे ही फिर भी
पुज़े तुझे जी
तेरे ही ख्यालों से महके आँगन
छुके तुझे रूह हो जाये पावन
तुझसे ही सूरज़ है रौशन
तूं ही मेरा दिल तूं ही मेरा मन
मेरी यादों के गुलशन का भंवरा
तूं ही है जन्मों का साथी मेरा
प्यार में रहुँगी मैं पल पल मरूंगी मैं
कुछ ना कहुंगी चुप अब रहुँगी मैं
तेरे हर ज़ुल्म ओ सितम
हँस हँस सहुँगी मैं
कभी तो मिलोगे
प्रितम
कहीं तो मिलोगे
हाल दिल का सुनाऊंगी जब
कहो क्या करोगे
सिने से लगाओगे या
झुठा गुस्सा तुम करोगे
कुछ भी करो तुम
सब मंजुर है
दिल ये मेरा बड़ा मजबुर है
चाहत तेरा मिलना ज़रूर है
पल पल कहता ये धड़कनों
का हुजूम है।।।

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