सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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पसरी हुई ख़ामोशी अल्फ़ाज़ ढूँढती है

पसरी हुई ख़ामोशी 
अल्फ़ाज़ ढूँढती है 
गुमनाम सी राहें
मंज़िल को तलाशती है  
सांसे बगैर धड़कन 
सिने में धड़कती है 
बेज़ान ज़िस्म जैसे 
हलचल को तरसती है
बेरंग तस्वीर कोई 
रंगों को मचलती है  
ज़ज्बातों के सागर 
शब्दों के ढूंढें गागर 
बूंद बूंद को तरसे 
प्यासी धरती जैसे कबसे 



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