सर्द बूंदों सा तुम्हारा प्रेम
मेरे रगो को जर्द करता गया
हौले हौले जाने कब कैसे
मेरे रूह पर काविज़ ये हो गया
प्रेम का वो आलिंगन
बेहोशी का वो आलम
क्षण क्षण तेरी याद में
छठपटा उठे है ये मन
कहने को तो भूल गयें
पर मुश्किल है इस जन्म
जिस दिल ने माना तुम्हें खुदा
तुम ही कहो कैसे करें तुम्हें जुदा।।
2 comments:
प्रेमपगे भाव
आभार मोनिका जी...
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