सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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बसयूँही

भटकता रहा रूह
ज़माने में इस कदर
ढूंढा जिसे यहाँ वहाँ था वो मेरे ही अंदर

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