सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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मुझमें ही है तूं

तुझे आज़ाद कर
खुद कैद हो गई हूँ
तेरी यादों में
तेरी छवि
अंकित है
मेरे दिलों जां में
मेरी हर साँस
लेती है तेरा नाम
तूं है बसा
मेरी हर धड़कन में
मुझमें ही है तूं
हर पल हर छन
हर जन्म में।।।

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3 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
This comment has been removed by the author.
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (13-06-2014) को "थोड़ी तो रौनक़ आए" (चर्चा मंच-1642) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

संजय भास्‍कर said...

. बहुत ही उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति ... आभार ।

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