जाने ये कैसी ख़ामोशी
हर तरफ़ फ़ैली उदासी
नज़रें ये प्यासी प्यासी
इश्क का रोग लगा है
दर्द का जोग बढ़ा है
प्रीत के रंग से तन मन
देखों क्या ख़ूब सज़ा है
सूरज़ तन को जलाए
चाँद मन को लुभाए
भीड़ ना मन को भाए
एकांत ही रास आए
ज़माने से ख़ुद को छुपाए
दर्द ए दिल सहते जाएँ
हँस हँस कर बातें करें
आँसुओं को पीते जाएँ
दुनियाँ की परवाह किसे अब
जो तेरे दिल को ना भाएँ
कुछ यादों को दिल में दबाए
चलो अब यूँही जिया जाए
राह कठिन आए तो आए
भटकन ही अब रूह को भाए
गुनाह का नाम ना देना
मोहब्बत पाक मदीना
कौन भला ख़ुदा को पाए
इश्क तो बस इबादत कहलाए
तेरी इबादत मन को भाए
रहूँ मैं बस यूँही अपनाए..!!!
इश्क इबादत...!!!
02:46 |
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2 comments:
बेहतरीन ....
शुक्रिया :)
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