सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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पता नही क्यूँ....

अथाह बारिश जिस प्रकार कभी कभार प्रलय रूप धारण कर पूर्व निर्माणों को बहा ले जाती है...हर तरफ़ चीख़ पुकार दौड़ भाग का माहौल...पर किसी के वश में कुछ नही...धीरे धीरे शांत होती बारिश..खुशियों के जगह मातम ही मातम...हँसता खेलता एक शहर बन जाता श्मशान...सिने में दवाये दर्द शुरू होता फिर नव निर्माण......कुछ यूँ ही महसूस हो रहा है जाने क्यूँ आज...दर्द प्रलय बन मन मस्तिष्क पर छा रहा है...कब्ज़ा ह्रदय पर किये जा रहा है...ऊफ़्फ़्फ़ कितनी भयानक पीड़ा है ये...इक माँ का दर्द...एक पिता की बेबसी...हर पल हर क्षण अपने ज़िगर के टुकड़े को जिंदा लाश बने देखना....नही कुछ भी तो नही इनके आगे मेरे ग़म की हेसियत...मेरा कोई दुःख मेरी कोई तकलीफ़ नही कर सकती उस माँ के दर्द का सामना...छुप छुप कर देखती रही जिस बच्ची को सोचती रही उसका कसूर...जाने क्यूँ आज उसे देख दर्द के बोझ से ये ये ह्रदय हो रहा है चूर चूर.....एक प्रलय सा दर्द का तूफ़ान आया हुआ भान होता है...मालूम होता परिवर्तन का कोई निशान है.... #बसयूँही

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