सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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मैं ख़ुश हूँ.....!!!! :)

तुम्हारी मुस्कुराती आँखें..डूबे रहना चाहती हूँ इनमें
अनंतकाल तक अपलक निहारते रहना चाहती हूँ इन्हें
बरसों बाद इस रूह को क़रार मिला..सुझता नही कुछ
जबसे तेरा दीदार मिला..मेरे इस गरीब दिल में मानों हीरे
मोती की बारिश सी होने लगी तेरी एक झलक सुकूं से तर
मुझे कर गयी..जानती हूँ तुम्हें मेरा यूँ तुम्हारी ओर देखना
पसंद नही पर क्या करूं मेरे मन पे मेरा ही जोड़ नही..
तुम्हें दूर से देख ही मेरे दिल को तसल्ली मिल जाती है बस
थोड़ी सी नेह भर आती है..लेकिन मैं ख़ुश हूँ...तुम्हारी हँसी
मेरे दिल को बहोत लुभाती है...तो क्या हुआ में उस हँसी में
शामिल नही...तुम्हारी हँसी तो मेरे ख़ुशी में शामिल है ना..
मेरे लिये तो यही किसी त्योहार से कम नही...जब भी
खुदको तनहा महसूस करती हूँ बहोत डर लगता है इसलिये
तुम्हारी तस्वीर को हमेशा साथ रखती हूँ..और ढ़ेर सारी बातें
करती हूँ..जानती हूँ ये भी एक स्वार्थ ही है..लेकिन इस स्वार्थ को
छोड़ पाना मेरे लिये संभव नही अब यही तो बचा है मेरे पास तुमसे
दूर होने के बाद...समय रूपी नदी को बहते ही जाना है...मैं और मेरे प्रेम तो बस वो किनारा है जो कभी दूसरे किनारे को छू नही सकते बस यूँही दूर से निहार सकते है...हाँ वो दूसरा किनारा तुम हो...जिससे में सिर्फ देख सकती हूँ दूर बहोत दूर से......मैं ख़ुश हूँ क्यूंकि तुम मुझे दिखते हो......!!!!

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3 comments:

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही अच्छी लगी मुझे रचना........शुभकामनायें ।
सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

निभा said...

शुक्रिया संजय जी.... बस इक कोशिश थी...

SHOBRANI KI BLOGG said...
This comment has been removed by the author.

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