बरसाता है प्यार आसमां
बनाकर रूप कुहासों का
समा लेता इस कद्र खुदमें
आता नही नज़र दृश्य ज़माने का...
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शीतल शीतल सा धुआँ
घिर के आता मुस्कुराता
प्यार की अदा निराली
क्षण में यूँ दिखला जाता
भर लेता बाँहों में अपने
सुकूं रूह को दे जाता
हौले हौले ज़ख्मों को जैसे
कोई अपना प्रेम से सहलाता
चादर बन वो प्रेम की शीतल
तन से यूँ चहुँ ओर लिपटता
स्पर्श पा कोमल कोमल
बेख़बर गमों से दिल
रोम रोम तक भींग जाता
मन को होता जब अहसास सुकूं का
बन तड़प इक बूंद ले रूप अश्कों का
रुक्स़ार पे हौले से बस यूँही चुपके से
लुढ़क जाता.....!!!
5 comments:
वाह ! वाह
आप बस यूँही लिखती चलिए .... हम वाह वाह करते रहें !!
शुक्रिया....!!!!
बेहतरीन .........
शुक्रिया मुकेश जी...!!!
कमाल से शब्दों का प्रयोग करते हुए इश्क की परिभाषा ,बहुत खुब ✌
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