कुछ दर्द ख़ास रहने दो
इक तड़प साथ रहने दो
बुझ न सके जो वो प्यास
अमिट रहने दे.....
_______________________
एक ख़वाब देखा था मैंने
संग तेरे मुस्कुराने का
अलबेली सुहानी चाँदनी में
आँखों में तेरी खो जाने का
सूरज निकला सपने टूटे
वेग हवाओं से शाख के
पत्ते बिछड़े....
कुछ यकीं ..कुछ गुमां
अनगिनत इम्तेहां
शीशे सा दिल
जतन बेइन्तेहाँ
ख़्वाब...क़िसा...ख़्याल..अफ़साना
अंखियों में सिमटते गए
अहले दिल को दिल समझते रहें
रह रह कर जो अश्रुओं में
बहते गयें....!!!
इक तड़प साथ रहने दो
बुझ न सके जो वो प्यास
अमिट रहने दे.....
_______________________
एक ख़वाब देखा था मैंने
संग तेरे मुस्कुराने का
अलबेली सुहानी चाँदनी में
आँखों में तेरी खो जाने का
सूरज निकला सपने टूटे
वेग हवाओं से शाख के
पत्ते बिछड़े....
कुछ यकीं ..कुछ गुमां
अनगिनत इम्तेहां
शीशे सा दिल
जतन बेइन्तेहाँ
ख़्वाब...क़िसा...ख़्याल..अफ़साना
अंखियों में सिमटते गए
अहले दिल को दिल समझते रहें
रह रह कर जो अश्रुओं में
बहते गयें....!!!
4 comments:
शुक्रिया आपका चर्चा में शामिल करने के लिए...!!!!
सुन्दर रचना! आदरणीय निभा जी!
धरती की गोद
शुक्रिया आपका संजय जी रचना पसंद करने हेतु~!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार, कल 21 जनवरी 2016 को में शामिल किया गया है।
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !
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