सत्य प्रेम के जो हैं रूप उन्हीं से छाँव.. उन्हीं से धुप. Powered by Blogger.
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तूं ही बता_____

खंड खंड हुए मन को
कह~कैसे सहलाऊँ मैं
खंडित हुआ हृदय
कह कैसे अब मुस्काऊँ मैं
टूटी वीणा मेरे अंतर की
बता तूं ही अब
कैसे गीत गाऊँ मैं~?

रोम रोम
कराह रहा
साँस साँस
घबरा रहा
ऐसी दशा
मन आँगन की,
आलौकिक शक्ति भरे
कुछ बीज वहाँ
तूं ही बता अब बोये कौन~?

चाँद को देख़ शबाब पे जब
सजधज़ कर झूमे सितारें
आसमां की महफ़िल का
वह रूप अनोखा
रात आधी
मुझे जगाये कौन?
तूं ही बता
अब दिखाए कौन~?

नशा तेरी मुस्कुराहट का
पागलपन मेरी चाहत का
वो पल सुहाने
लौटाए कौन?
नशीली उन गलियों में
बाँह पकड़ मेरी मुझे
तूं ही बता
अब ले जाये कौन~!!!??

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2 comments:

mohan intzaar said...

बहुत सुंदर.... भावपूर्ण ...सादर

निभा said...

आभार

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