आत्मा
प्रेम
प्रेम तुम्हारे लिए..
ठंडी हवाओं के संग
नर्म मुलायम खुशबूदार
गुलाब की खुबसूरत
पंखुड़ियों पर चलते रहना
रौंदे जाने पर
जिनकी खूशबू
और तीव्र हो
तुम्हारे दिल ओ दिमाग को
तरोताज़ा कर देती हैं__
प्रेम मेरे लिए...
मरुस्थल की
तपती रेत में
नंगे पांव
गिरते पड़ते
चलते रहना
जहाँ कोई
मरीचिका भी नही
जो दे सके
मेरी आँखों को
भर्म, और मैं
कर सकूँ अपने
दिमाग को भ्रमित
ताकि मिल सके
मेरे दिल को
उम्मीद की
एक नई किरण__|||#बसयूँही
सफ़र__
ट्रेन में
खिड़की वाली
सीट पर बैठी
पीछे छुटते हुए तमाम
दृश्य को अपनी
आँखों में बसा लेने के
प्रयास में चली जा रही हूँ,
कहाँ? नही मालूम
कब तक? पता नही
पर जा रही हूँ, दृश्य सारे
बड़ी तेजी से ओझल होते
जा रहे हैं, मष्तिक उन
दृश्यों को याद नही रख
पा रहा___
इन दिनों
बहुत भूलने लगी हूँ
इक खालीपन सा लिए
मन मेरा इंतजार में है
उस टीटी के जो आकर
मेरा पीठ थपथपाए और
कहे,मैडम आपका स्टेशन
आ गया प्लीज उतर जाएं__|||#बसयूँही
मुरली वाले__❤
मुरली वाले तू सुनले पुकार
नैया मेरी, फंस गई मजधार___
भूल हुई तुझको न जाना
दिलने कभी तुमको न माना
तुझमें ही सारे संसार का सार
मुरली वाले तू सुनले पुकार
नैया मेरी, फंस गई मझधार
किस को पुकारूँ कौन सहारा
किस को पुकारूँ कौन सहारा
तुझपे ही मैंने तन मन हारा
कर दे तू बेड़ा पार
मुरली वाले तू सुनले पुकार__
हर तरफ रिश्तों का मेला
काम क्रोध सुख दुःख झमेला
किसपे करें अब एतवार
मुरली वाले तू सुनले पुकार
नैया मेरी, फंस गई मझधार___|||
तलाश___|||
घर की दीवारों को
कभी छत को कभी उस छत से
लटक रहे पंखे को
उसकी नजरें तलाश रहीं है आज
उन नजरों में परवाह जरा सी
अपने लिए
जिनकी परवाह को वह
खुदको बिसार गई
वो ढूंढ रही है उनकी बातों में
ज़िक्र जरा सी अपने लिए
जिनकी फ़िक्र कर वह
दिन रात मरती रही,
अंतः
कुछ न मिला कहीं उसे
घूँट आंसुओं की पीती रही
खाली हाथों की लकीरों को देख
बस यूँही मुस्कुराती रही
दीवारों से करके बातें दिल की
बोझ दिल का कम करती रही__|||#बसयूँही
इक सफर___|||
परिपक्य हो गया
वक़्त के थपेड़ो से
सख्त हो गया
किया न गया तुमसे
कदर इस दिल की
आंखे देखों मेरी
सुखकर बंजर हो गया
कहा न गया तुमसे
लफ्ज़ दो प्यार भरे
दर्द देखो मेरा पिघलकर
समंदर हो गया
तुम्हे सोच खुश
होता है दिल
वर्षों का प्यार जिसका
रेत हो गया
एक नाम था जो
तुमसे जुड़ा
देखो जीवन से तुम्हारे
वह आज मिट चला___|||
छोड़ चली हूँ___|||
हृदय में तुम्हारी याद लिए
अनुराग के मधुर क्षणों संग
वियोग की पीड़ा अथाह लिए
कप्पन लिए पैरों में अपने
अवशेष प्रेम का कांधे लिए
जा रही हूँ बहुत दूर तुमसे
बोझ कलंक का माथे लिए
व्यथित मन की घुटती साँसे
आंसुओं से भींगे अधर लिए
मैं छोड़ चली हूँ अब तुम्हें
ह्रदय में तुम्हारी याद लिए__|||
#बसयूँही
लिखती आई प्रेम
आंधी में तूफान में
बाढ़ में सैलाब में
लेकिन कभी
देख न पाई
वक़्त के थपेड़ों ने
उस स्याही को
कर दिया था फीका
वो फ़रेब खाती रही और मुस्काती रही वह थी प्रेम में वो बस यूँही उसे चाहती रही
पल बिता दिन बीतें
बिता महीनों साल वर्षों से अनदेखी का दिल को रहा मलाल
पत्थर बना दिल उसका
उसी को समझाए यही होता है अंजाम प्यार का, पगली तू क्यूँ नीर बहाये
कौन समझाए
इस पत्थर दिल को वेग उन तेज लहरों का चीर देता है सीना जो इन ऊँचे ऊँचे चट्टानों का
दर्द था, तकलीफ़ थी
ज़ख्म भी कुछ गहरा था संग जिसके उसको उम्र भर बस यूँही तन्हा गुजारना था
अनदेखी भी होनी थी इल्ज़ाम भी सहना था तिरस्कार की अग्नि में जलकर प्यार भी उसी से करना था___|||#बसयूँही
युद्ध
और मैं अबकी इंतजार में हूँ
अपनी आत्मा के हार जाने का
अपनी इस घुटी हुई परिस्थितियों से
उबरने के लिए______
आत्मा के मध्य
वो दिल जो जलता है
तड़पता है सक्षम होते हुए भी
हर रोज तिल तिल कर मरता है
कारण है एक शत्रु उस का
एक ही शरीर में जो रहता है
कहते हैं जिसे ईश्वर की अमानत
आत्मा कहलाता है
रोक देता है दुःख देने से जो
दर्द पीना सिखाता है
सह अपमान खोकर मान
पात्र हँसी का बना देता है
प्रेम की मरीचिका के पीछे
भागते भागते ,नर्क
जीवन को बना देता है
ये आत्मा ही है सबब इस दिल
के दर्द का, हर बार ही देकर
दलील कोई अपनों को बचा
ले जाता है ,इसे दिखता नही क्या
कष्ट मेरा यह क्यूँ बार बार व्यवहार
मुझसे सौतेलों सा करता है____??
प्रतिबद्धता #पाश
जिस तरह बैलों की पीठ पर उभरे
चाबुकों के निशान हैं जिस तरह कर्ज़ के कागज़ों में
हमारा सहमा और सिकुड़ा हुआ भविष्य है
हम ज़िंदगी, बराबरी या कुछ भी और
इसी तरह सचमुच का चाहते हैं
घरों और खेतों में हमारे अंग-संग रहते हैं
हम उसी तरह हुकूमतों, विश्वासों और खुशियों को
अपने साथ साथ देखना चाहते हैं
ताकतवरों, हम सब कुछ सचमुच का देखना चाहते हैं
हम उस तरह का कुछ भी नहीं चाहते
जैसे पटवारी का ‘ईमान’ होता है
या जैसे किसी आढ़ती की कसम होती है-
जैसे गुड़ की पत्त में ‘कण’ होता है
जैसे हुक्के में निकोटिन होती है
जैसे मिलन के समय महबूब के होंठों पर
मलाई-जैसी कोई चीज़ होती है
पुलिस की लाठियों पर टंगी किताबों को पढ़ना
हम नहीं चाहते
फौजी बूटों की टाप पर हुनर का गीत गाना
हम तो वृक्षों पर खनकते संगीत को
अरमान-भरे पोरों से छूकर देखना चाहते हैं
आंसू गैस के धुएं में नमक चाटना
या अपनी ही जीभ पर अपने ही लहू का स्वाद चखना
किसी के लिये भी मनोरंजन नहीं हो सकता
लेकिन हम झूठ मूठ का कुछ भी नहीं चाहते
और हम सब कुछ सचमुच का देखना चाहते हैं
ज़िंदगी, समाजवाद या कुछ भी और...
क्यूँ____
क्यूँ मंत्र मुद्ध मैं हो जाती हूँ
भ्रम संदेहों को
निकाल हृदय से
क्यूँ भाव समर्पण से
भर जाती हूँ
क्यूँ आँसू छलकाता है
क्यूँ याद कर उसे ये दिल
कभी रोता है मुस्काता है
क्यूँ हूक सी उठती है दिल में
क्यूँ आस का पंछी रोता है
जो नही मेरा देख उसे दिल
क्यूँ रह रह आहें भरता है
वो खुश है दुनियां में अपनी
दिल बैचेन मेरा क्यूँ रहता है
क्यूँ देखने को सूरत उसकी
आँखों का काजल पिघलता है
क्यूँ पत्थर दिल कोई होता है
सोचता है अक़्सर मन ये मेरा
क्यूँ लेकर खुशियां प्रेम
दर्द हमे दे जाता है__|||